Great Bell of Dhammazedi - 1 in Hindi Adventure Stories by Naina Khan books and stories PDF | Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 1

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Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 1

Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं:
( The Sound That Never Sank)

✨ भूमिका (Prologue):
> "कुछ ध्वनियाँ ऐसी होती हैं जो समय के साथ नहीं मिटतीं। वे नदी की गहराइयों में भी गूंजती रहती हैं—सुनने वाले कान चाहिए, और समझने वाला दिल।"

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🧭 संक्षिप्त सारांश (Plot Overview):
यह कहानी है आरव सेन की—एक युवा भारतीय पुरातत्वविद्, जो अपने पिता की अधूरी खोज को पूरा करने म्यांमार आता है। उसका लक्ष्य है— Great Bell of Dhammazedi को खोज निकालना, वह घंटी जो 300 टन वजनी थी और जिसे 1608 में एक पुर्तगाली लुटेरे ने चुराने की कोशिश की थी, लेकिन वह यांगून नदी में समा गई।

लेकिन यह सिर्फ़ एक ऐतिहासिक खोज नहीं है। यह एक यात्रा है पागलपन और जुनून की, जहाँ इतिहास, मिथक, और आत्मा की गहराइयाँ एक-दूसरे में उलझ जाती हैं। आरव को न सिर्फ़ नदी की तलहटी में घंटी की तलाश करनी है, बल्कि उसे उन कहानियों, श्रापों और रहस्यों से भी जूझना है जो सदियों से इस घंटी को घेरे हुए हैं।



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📖 अध्याय १: ध्वनि की पहली दस्तक

दिल्ली की एक पुरानी हवेली में, धूल से ढकी अलमारी के पीछे छिपी थी एक डायरी—चमड़े की जिल्द, किनारों पर जंग लगे पन्ने, और भीतर एक नाम: डॉ. रघुवीर सेन ।

आरव सेन ने वह डायरी तब खोली जब वह अपने पिता की मृत्यु के बाद पहली बार उनके अध्ययन कक्ष में गया था। पन्नों पर बर्मा की मिट्टी की गंध थी, और शब्दों में एक अधूरी खोज की बेचैनी।


 "घंटी अब भी बोलती है, लेकिन वह पागल कर देती है..."

आरव ने पढ़ा और सिहर गया। यह वही घंटी थी जिसके बारे में उसके पिता ने बचपन में कहानियाँ सुनाई थीं— Great Bell of Dhammazedi, जो 1608 में यांगून नदी में डूब गई थी। कहा जाता है, वह दुनिया की सबसे भारी घंटी थी, और उसकी ध्वनि इतनी गहरी थी कि आत्मा तक पहुँच जाती थी।

लेकिन डायरी में कुछ और था—पुराने नक्शे के टुकड़े, कुछ बर्मी लिपि में लिखे संकेत, और एक आख़िरी वाक्य:

 "अगर तुम मेरी खोज को पूरा करना चाहते हो, तो यांगून जाओ। लेकिन याद रखना—यह सिर्फ़ इतिहास नहीं, आत्मा की परीक्षा है।"

आरव ने उसी रात टिकट बुक किया। उसे नहीं पता था कि वह एक घंटी की खोज में नहीं, बल्कि अपने भीतर की गहराई में उतरने जा रहा है।

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📖 अध्याय २: यांगून की पुकार

यांगून की हवा में कुछ अलग था—नमी, इतिहास, और एक अनकही बेचैनी। जैसे शहर खुद किसी रहस्य को छिपाए बैठा हो।

आरव सेन एयरपोर्ट से बाहर निकला तो उसे सबसे पहले एक पुरानी इमारत दिखी—छत पर एक घंटी की आकृति बनी थी। यह संयोग नहीं लग रहा था। टैक्सी में बैठते ही उसने ड्राइवर से पूछा, "क्या आप Great Bell of Dhammazedi के बारे में जानते हैं?"

ड्राइवर ने पीछे मुड़कर देखा, उसकी आँखों में हल्की चमक थी। "घंटी?" उसने धीमे स्वर में कहा। "वो जो नदी में डूबी थी? लोग कहते हैं, वो अब भी बोलती है। लेकिन जो सुनता है, वो कभी पहले जैसा नहीं रहता।"

आरव चुप हो गया। उसके पिता की डायरी की पंक्तियाँ फिर से गूंजने लगीं।

टैक्सी उसे एक पुरानी लाइब्रेरी तक छोड़ती है, जहाँ उसे मिलती है माया ल्विन —एक स्थानीय इतिहासकार, जिसने घंटी पर वर्षों शोध किया है। माया उसे एक पुराना नक्शा दिखाती है, जिसमें नदी के एक हिस्से पर लाल निशान है।

"यहाँ कुछ है," माया कहती है। "लेकिन हर बार जब कोई खोजने जाता है, कुछ न कुछ अजीब होता है। एक बार एक गोताखोर ने कहा कि उसने घंटी को देखा—लेकिन फिर वह कभी बोल नहीं पाया।"

आरव की साँसें तेज़ हो जाती हैं। वह जानता है, यह सिर्फ़ एक खोज नहीं, एक परीक्षा है।

रात को होटल की खिड़की से वह नदी को देखता है। चाँद की रोशनी में पानी चमक रहा है। और तभी... एक हल्की सी गूंज सुनाई देती है। जैसे कोई घंटी बहुत दूर से बज रही हो।

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अगले अध्याय में, आरव और माया मिलकर नदी की तलहटी में उतरने की योजना बनाते हैं—जहाँ उन्हें पहली बार घंटी की छाया दिखाई देती है।